Thursday 31 December 2015

मुखौटों का शहर


तुम इतना तेज मत चलो 
इतने आगे निकल तो गए हो 
पर कम से कम पल दो पल तो रुको 
रुख कर चलने के बीच 
इतना वक्त तो हो मेरे मीत
इंतज़ार जो तुमने किया हो मेरे लिए 
उसका मुझे अहसास तो हो 
मेरे प्यार में इतना हो दम 
मेरे इंतज़ार में थम जाए तुम्हारे कदम 
तुम्हारी आगे बढ़ने की चाह 
बदल देगी हमारी राह 
बहुत ऊँचाई तक तुम पहुंच गए हो
अगर तुम मुझे हाथ बढ़ा कर थामते
मैं भी उन उचांइयो को महसूस करती 
अब खत्म सी हो रही है कदमों की समानता 
हाथ की ठंडक से पता चल रही है 
रिश्तों की गर्माहट 
सुनहरे सपनों में उलझ कर बहुत दूर निकल गए 
बीच में वक्त के थफेड़ों ने
मिटादी पुरानी यादों की कहानी
आख़रि पड़ाओं पर 
हमारी मुलाकात वास्तविक नहीं थी 
बातों और मुलाक़ातों से ही समझा 
की आगे यात्रा
मिटा देगी मेरा अस्तित्व, क्योंकि?
अब तुम मुखौटों के शहर में
जो आ गए हो 
जहां कदम कभी थकते नहीं 
एक दूसरे का पीछे छोड़ने की चाह में 
सांस लेने को भी लोग रुकते नहीं

Thursday 17 December 2015

माँ का इंतज़ार


माँ मुझे आज भी तेरा इंतज़ार है 
पता नही क्यों ?
तू आती है मिल्ती है और 
प्यार भी बहुत करती है 
तुझे मेरी फिक्र भी है 
पर मुझे तेरा इतंज़ार है 
कल कोइ मुझसे पूछ रहा था 
अरे पागल कैसा तेरा ये इतंज़ार है
मैं तुम्हें नहीं बता सकती
बात बरसों पुरानी है 
वो मेरा नन्हा सा मन 
सालों बाद भी; मेरे अंदर 
छुप कर बैठा है 
और सवाल करता है 
अपने आप से बार-बार  
वो सवाल आँखों में 
छुप गया है आँसू बना
होठों पर आते-आते रुक गया है
कुछ मन में फाँस बन चुभ गया है 
तूने मुझे अपने से अलग कर कहा था 
मैं यहाँ खुश रहूंगी 
और तू मुझसे मिलने 
आया करेगी कभी-कभी 
वो कभी-कभी शब्द 
मेरे मन से कभी नहीं निकला 
वो तेरा कहना आया करूँगी 
मेरे लिए इतंज़ार शब्द बन गया 
और वो बचपन का इतंज़ार 
मेरे अदंर डर बना कर ऐसे छुप गया कि
वो कभी ख़ुली हवा में निकला ही नहीं 
और वो इंतज़ार शब्द 
अपाहिज हो गया 
अब वो चल नहीं सकता है 
इसलिए मेरे अंदर से निकल नहीं पाता है ।

चित्र गूगल के माध्यम से 

Thursday 3 December 2015

जब बात सबूतों की चली


तुमने बड़ी खामोशी से लौटाए कदम
पर मेरे दिल पर दस्तक हो ही गई मेरे हमदम 
आते हुए कदमों में एक जोश था
लौटता हुआ हर कदम ख़ामोश था 
वो शिकायतों की गिरह ख़ोल तो देता 
जो तूने अपने मन में बांधी थी
दो लफ़जों में बोल तो देता
नासूर जो तूने बिना वजह पाले
उसकी दवा मुझसे पूछ तो लेता, ओ मतवाले 
चाँद को गवाह बना कर किए थे जो वादे
क्यों भोर होने तक कमज़ोर पड़ गए तेरे इरादे 
तेरी नज़रों का वो धोख़ा था 
वो धुँध में जो साया था 
वो मेरा वजूद था 
वर्षों से मुझमें समाया था 
वो मेरा आत्मसम्मान था 
जो तुझ से टकराया था 
तुम बात सबूतों की मत करो 
कभी अपने गिरहेवांह में भी झाँका करो