Sunday 17 May 2015

मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है



मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है
जिसमें मै खुशियाँ रखती थी
वो बक्सा कही खो गया है
बहुत कीमती था वो
किसी को मिले तो लौटा जाना
उसके खोने से
अब सब कुछ बिखर गया है
वक्त जो गया, मेरे हाथ नहीं आया
और न उसे साथ लाया
मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है
मै बक्से में ताला नहीं लगाती थी
खुशियाँ उसमें समाती न थी
अब कुछ बचा ही नहीं मेरे पास
मेरा मन न खुश है न उदास
अब न इंतजार है न खोने का गम
न अब नए बक्से की जरुरत है
पर मेरा बक्सा किसी को मिले तो
मेरे पते पर पहुँचा जाना
मेरा पता
वही पलाश का पेड़
पुरानी खुशियाँ बंद पड़े - पड़े
कही गल न जाएं
मेरे पुराने दोस्तों, उन खुशियो को
धूप दिखाने आ जाना इक वार
मेरे भाग्य का सब कुछ खो क्यों जाता है ?

4 comments:

  1. वाह सुंदर अभिव्यक्ति ।

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    1. बहुत बहुत आभार सुशील जी |

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  2. मेरा पता ... वही पलाश का पेड़ ...
    बहुत उम्दा ख्याल को शब्द पहना दिए हैं ...

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    1. आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

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